चोटी की पकड़–100
मुन्ना ने कहा, 'हम पूछकर बताते हैं।" रुस्तम को बुलाकर ले चली।
एकांत में पूछा, "क्या हुआ?"
रुस्तम ने कहा, "एक आदमी मिला, मैं भगा, नहीं तो गोली का शिकार हो गया होता।"
मुन्ना को नहाकर लौटी सूरत याद आई। पूछा, "कैसा है?"
रुस्तम ने एक बाबू का हुलिया बतलाया।
"बुआ का क्या हुआ?"
"हमको उसी की कार्रवाई मालूम होती है।"
मुन्ना को विश्वास हो गया।
ठहरकर पूछा, "बुआ क्या उस आदमी के साथ रह गईं?''
"हाँ।" रुस्तम ने कहा।
मुन्ना ने तीन सिपाही लिए। रुस्तम से घटनास्थल ले चलने के लिए कहा।
लोग चले। जहाँ घटना हुई थी वहाँ अँधेरा है। रुस्तम ने डाल देखी।
दो म्यान और एक तलवार लटक रही है। बुआ का निशान नहीं।
मुन्ना तुरंत घूमी। जहाँ प्रभाकर का जीना है, चली। आदमी भी साथ।
तब तक प्रकाश ताली लगाकर लौट चुका था। लोगों ने जीने के दरवाजे सिपाही की हैसियत से आवाजें लगाईं। कोई न बोला।
कोठी घूमकर मालखाने के पहरे से जाना चाहा, दरवाजे बंद मिले। खुलते ही नहीं।
एक दफे पुलिस की याद आई। खजांची बैठा न रहेगा, सोचा। राजा से रानी के बदले की बात गई, बल जाता रहा।
रुपए निकालने गई। पाँच रुपए और दस रुपए के नोटों के बंडल दो-दो करके निकाल सके, इस तरह रखे थे। एक हजार के करीब नोट निकाले और 50)-50) रुपए सिपाहियों को और दिए । बाकी जमादार को।
नोटों वाली तिजोड़ी बाहर गड़वा दी।